Saturday, November 7, 2009

मैं कौन हूँ

कभी भीड़ में
कभी रात में
तो कभी अपनों की नजरो में
तो कभी अपनों की जज्बातों में
खुद को खोजता हूँ
मैं कौन हूँ
सबसे पूछता हूँ
एक दिन रात की
तन्हाई में अन्दर
से एक आवाज आई
मैं तो एक इन्सान हूँ
जो बे मतलब ही जिए जा रहा है
अपने आप से ही लडें जा रहा है



5 comments:

  1. सुन्दर प्रयास है इसे हिन्दी में क्यों नहीं लिखे.

    अपने ब्लोग का रजिस्ट्रेशन ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत में भी कर लो तो लोग पढेंगे. लिखते रहो.

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. Dear Mr. Sumit Really a nice one I like it keep it up

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