Monday, May 10, 2010

आम के बाग़

अरे तुने आम के बाग़ ही क्यों लगाये
उगाना ही था तो गाज़र मुली उगाता
तुने हमेशा कल की ही सोची
कभी अपने आज की भी सोचता

तेरे आम को तो तेरे बच्चो ने खाया
अरे तुझे कया मिला
गाज़र मुली तो तू ही खता

तुझे मारने के लिए सुखा बाढ़ या
बिन मौसम बरसात ही कया कम थे
तुने खुद को सूली पर भी लटकाया

फिर भी तुने कल की ही सोची
शायद इसीलिए तो हम जिन्दा है
सोचता हु हम जैसा अगर तू भी होता
तो हम जैसो का कया होता

इसीलिए तो तुझे बार बार प्रणाम करता हु

और अब मैं भी आम के बाग़ लगाता हु


10 comments:

  1. सार्थक सोच
    आम भी जरूरी और मूली भी
    आज की नीव पर ही कल होगा.

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  2. not bad
    jo kal ki sochi.
    hum bhi kal ki jaroor sochege
    huuuuuuuuuuuuuuu

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  3. achi hai par hum to
    gaazar muli hi ugayege

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  4. sahi kaha
    kal bhi to jaruri hai
    hum jinda bhi to kal ke liye hi hai

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  5. बहुत अच्छा लिखा है आपने ...हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.

    राम त्यागी
    http://meriawaaj-ramtyagi.blogspot.com/

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  6. सुमित भाई,

    अच्छा लिखते हो। पर कोशिश करो कि इसमें निरंतरता आए। इस प्रयास को जारी रखो। बहुत कम लोग होते हैं जो अपनी भावनाएं व्यक्त कर पाते हैं। वरना ज़्यादातर तो अपने दर्द और इच्छाओं के साथ यूं ही घुट-घुटकर मर जाते हैं। आप उन ख़ुशनसीबों में से एक हो जिसे ख़ुदा ने अपने को व्यक्त करने की नेमत बख़्शी है। इसका इस्तेमाल करो और लोगों पर छोड दो। बिना चिंता किए कि कोई उसे कैसे लेगा। भई सबका अपना नज़रिया होता है ।
    शुभकामनाओं सहित
    रवीन्द्र

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