Monday, June 14, 2010

जमीन तो अपनी है

अभी अभी तो आसमा से गिरे है
और गिरे भी तो ऐसा
खजूर पे अटके
किसे छत से लटके

सीधे के जमीन पे गिरे
अब जो गिरे है तो उठने में समय
तो लगेगा ही
और अगर उठ भी गए तो वोही
आसमा पाना आसान होगा
पर उठना तो है ही
दिल में हौसला जो है
चाहे आसमा मिले मिले
जमीन तो अपनी है

Thursday, June 3, 2010

ये दिल्ली है

चार बूंद जिन्दगी हो तो ,
उसे पोलियो कहते है
चार लाइन हिंदी की हो
तो उसे कविता कहते है
चार कुत्ते एक साथ भोंके
तो उन्हें राजनेता कहते है

घर से निकलते तो है
पर आने का पता न हो
न जाने इस शहर को
किसकी नज़र लग गई

घर छोटे छोटे पर दिल
बड़ा यही तो दिल्ली है

पाप का घड़ा

कभी कुछ कहा
ये पाप का घड़ा यू ही भरता रहा
फीर भी तुमने कुछ कहा
अब जब ये फूटने वाला है
तो कहते हो के बस
बहुत हो चूका ,

हर गलती को यू ही भुलाया
अचानक कहते हो की गलती की है
डरता हु कही ये घड़ा फुट जाये
और तुम्हे खो दू

अब तो पास आने से भी डरता हु
यकी नहीं आता की ये वोही तुम हो
जीसने कभी कुछ कहा
और अब देखना भी नहीं चाहते हो

मैं कभी भी डरता नहीं
अगर पहली गलती को ही कह देते
की बस बहुत हुआ

Wednesday, June 2, 2010

रास्ते का पत्थर

मिटटी के घरोंदे
पलपल में गिरते टूटते रहते हैं
महलो की दीवारे अक्सर
तन्हाई से बाते करती है
कागज के फूलो से भी भला
कही खुशबु आती है
आधुनिकता के इस दौर ने
हर परिभाषा बदल दी है
बेटा बाप का बाप बेटे का
दुश्मन बन बैठा है
रश्ते में पड़े पत्थर
को ठोकर जरुर मारनी है
अरे रस्ते में पड़ा ही सही
गिरा के सही गलत का एहसाश तो करता है
ठोकर मारकर उसे क्यों
भटकाआते हो
उसका तो काम ही है
रस्ते में पड़े रहना

रावन होता तो

हमेशा भलाई ही चाही
कभी कुछ भी बुरा चाह
फिर भी लोगो ने भुलाया
हमेशा अपनी याद दिलानी चाही
पर किसी ने याद नहीं किया
तभी तो लगता है की काश
मैं भी रावन होता
जब भी खुल के हसता तो
लोग कहते रावन की तरह हसता है

जब भी कुछ बुरा करता
तो लोग याद करते रावन की तरह
हज़ार अच्छे काम किये पर
एक बुरे काम ने सब पे पानी फेरा

काश के मई भी रावन होता
दिन भर में एक बार तो लोग याद करते

राम जैसा बन के काया मिला
अपनों ने ही भुला दिया
गैरो का क्या करता
अब तो सच में लगता है
की काश मैं भी रावन होता


अब तो सच में लगता है
की काश मैं भी रावन होता

Tuesday, June 1, 2010

आख़िरी मौका

गेम हो या जिंदगी
जब लास्ट लाइफ होती है तो
आप क्या करते हो
आप बहुत सतर्क हो जाते
आप कोई गलती नहीं करना चाहते
एक गलती और आप फिनिश
ये तो गेम है जनाब
आप फिर से स्टार्ट कर सकते हो
पर जिंदिगी का क्या करे

एक गलती और आप अपने अपनों से इस कदर दूर
होते हो जैसे आप आप नहीं पराये हो
ये लास्ट वर्ड हर किसी के सामने आता है
कुछ को तो बदल कर रख देता है

पर कुछ आदत से मजबूर
गलती पे गलती कर रहे होते है
अपनों को दूर कर रहे होते है

Saturday, May 15, 2010

अधमरा इन्सान

अरे तू किसान है या
या एक अधमरा इन्सान
तू उगाता तो बहुत है
पर खाता बड़ा कम
तेरा दिल तो बहुत बड़ा है
पर घर बड़ा ही छोटा

जरा देख तेरे फसलो की दलाली करने वालो को
तोंद लटक के घुटनों को छूती है
और तेरा पेट तेरी रीढ़ को छूता है

दीन भर तू धुप में तपता है
और रात को पेट की आग तुझे जलाती है
तुने सबके भंडारे भर दीये
पर अपना ही खाली छोड़ दीया