Saturday, May 15, 2010

अधमरा इन्सान

अरे तू किसान है या
या एक अधमरा इन्सान
तू उगाता तो बहुत है
पर खाता बड़ा कम
तेरा दिल तो बहुत बड़ा है
पर घर बड़ा ही छोटा

जरा देख तेरे फसलो की दलाली करने वालो को
तोंद लटक के घुटनों को छूती है
और तेरा पेट तेरी रीढ़ को छूता है

दीन भर तू धुप में तपता है
और रात को पेट की आग तुझे जलाती है
तुने सबके भंडारे भर दीये
पर अपना ही खाली छोड़ दीया




6 comments:

  1. तुने सबके भंडारे भर दीये
    पर अपना ही खाली छोड़ दीया
    तुम्हारी यह कविता बहुत अच्छी है. इसी तरह का लेखन करो.
    कुछ संशोधन जरूरी है
    दीन भर तू धुप में तपता है (दीन की जगह दिन, धुप की जगह धूप)
    तुने सबके भंडारे भर दीये (तुने की जगह तूने, दीये की जगह दिये)
    लिखते रहो

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  2. bahut accha likha hai
    kisano ki sacchai nazar aati hai

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  3. ssssssssssssssssoooooooooooooo swt

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  4. हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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