अरे तू किसान है या
या एक अधमरा इन्सान
तू उगाता तो बहुत है
पर खाता बड़ा कम
तेरा दिल तो बहुत बड़ा है
पर घर बड़ा ही छोटा
जरा देख तेरे फसलो की दलाली करने वालो को
तोंद लटक के घुटनों को छूती है
और तेरा पेट तेरी रीढ़ को छूता है
दीन भर तू धुप में तपता है
और रात को पेट की आग तुझे जलाती है
तुने सबके भंडारे भर दीये
पर अपना ही खाली छोड़ दीया
sumit ji badi sateek baat kahi..
ReplyDeletegood lage raho
ReplyDeleteतुने सबके भंडारे भर दीये
ReplyDeleteपर अपना ही खाली छोड़ दीया
तुम्हारी यह कविता बहुत अच्छी है. इसी तरह का लेखन करो.
कुछ संशोधन जरूरी है
दीन भर तू धुप में तपता है (दीन की जगह दिन, धुप की जगह धूप)
तुने सबके भंडारे भर दीये (तुने की जगह तूने, दीये की जगह दिये)
लिखते रहो
bahut accha likha hai
ReplyDeletekisano ki sacchai nazar aati hai
ssssssssssssssssoooooooooooooo swt
ReplyDeleteहमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
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