Tuesday, June 1, 2010

आख़िरी मौका

गेम हो या जिंदगी
जब लास्ट लाइफ होती है तो
आप क्या करते हो
आप बहुत सतर्क हो जाते
आप कोई गलती नहीं करना चाहते
एक गलती और आप फिनिश
ये तो गेम है जनाब
आप फिर से स्टार्ट कर सकते हो
पर जिंदिगी का क्या करे

एक गलती और आप अपने अपनों से इस कदर दूर
होते हो जैसे आप आप नहीं पराये हो
ये लास्ट वर्ड हर किसी के सामने आता है
कुछ को तो बदल कर रख देता है

पर कुछ आदत से मजबूर
गलती पे गलती कर रहे होते है
अपनों को दूर कर रहे होते है

9 comments:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  2. बहुत उम्दा रचना है। यथार्त को उजागर करती हुई।चंद शब्दों मे बहुत गहरी बात कह दी। बधाई स्वीकारें।

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  3. पर कुछ आदत से मजबूर
    गलती पे गलती कर रहे होते है
    यही तो मानव के लिये अभिशाप है वह गलतियों से बाज नही आता
    सुन्दर लिखा है
    बहुत सुन्दर

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